गुडग़ांव, जहां नाग देवता का वास होता है, वहां लक्ष्मी
भी जरुर रहती है। नाग पूजा से आर्थिक तंगी और वंश वृद्धि में आ रही
रुकावटें भी दूर होती हैं। आज नाग पंचमी है। नाग पंचमी के दिन नागों की
पूजा करने से सर्प और विष के भय से भी छुटकारा मिल जाता है। पंडित डा.
मनोज शर्मा का कहना है कि नाग हमारे शरीर में मूलाधार चक्र के आकार में
स्थित हैं। उनका फन सहस्त्रार चक्र है। कल्पभेद के अनुसार इनके जन्म के
विषय में अनेक कहानियां मिलती हैं। लिंग पुराण का मत है कि सृष्टि सृजन
हेतू प्रयासरत ब्रह्मा जी घोर तपस्या करते हुए हताश होने लगे तो क्रोधवश
उनके कुछ अश्रु पृथ्वी पर गिरे और वे सर्प के रुप में उत्पन्न हो गए। इन
सर्पों के साथ कोई अन्याय न हो यह सोचकर भगवान सूर्य ने इन्हें पंचमी
तिथि का अधिकारी बनाया। तभी से पंचमी तिथि पर नागों की पूजा की जाती है।
नाग पंचमी के दिन नागों को दूध पिलाने की परंपरा भी तभी से चली आ रही है।
उनका कहना है कि इसके बाद ही भगवान ब्रह्मा ने अष्ट नागों को भी ग्रहों
के बराबर शक्तिशाली बनाया। ये सभी नाग सृष्टि संचालन में ग्रहों के समान
ही भूमिका निभाते हैं। भगवान विष्णु शेषनाग से शैय्या रुप में सेवा लेते
हैं। शिव उन्हें अपने कंठ में धारण करते हैं, जबकि रुद्र, गणेश और
कालभैरव इन्हें यज्ञोपवीत के रुप में धारण करते हैं। अष्ट नागों में
शेषनाग स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण किए हुए हैं। पंडित जी का कहना
है कि गृह निर्माण, पितृदोष और कुल की उन्नति के लिए नाग पूजा का बड़ा ही
महत्व है। शास्त्रों के अनुसार सभी अष्ट नाग अष्ट लक्ष्मी के अनुचर के
रुप में जाने जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि जहां नागदेवता का वास रहता
है, वहां लक्ष्मी जरुरत रहती है। नाग गायत्री का जाप करने से भी अभिष्ट
कार्य की सिद्धि होती है। नागों की पूजा करने से मनुष्य की जन्म कुण्डली
में राहू-केतू जन्य सभी दोष तो शांत होते ही हैं साथ ही कालसर्प दोष और
विषधारी जीवों के दंश का भी भय नहीं रहता। उनका कहना है कि नए घर का
निर्माण करते समय सुख-शांति के लिए नीवं में चांदी का निर्मित नाग-नागिन
का जोड़ा भी रखा जाता है। नाग पंचमी के दिन लोग अपने-अपने दरवाजों पर गाय
के गोबर से नाग आकृतियां भी बनाकर उनकी पूजा करते रहे हैं।
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